रुधिर (Blood)

रुधिर (Blood): यह एक तरल संयोजी उत्तक है जो लाल रंग , जल से भारी तथा क्षारीय प्रकृति का होता है। 
↪इसकी pH का मान 7.4 होता है।
↪वयस्क मनुष्य में लगभग
5-6 लीटर  रुधिर पाया जाता है। स्त्रियों में 20-25% कम रुधिर पाया जाता है।
↪रुधिर का लाल रंग हीमोग्लोबिन पदार्थ के कारण होता है , इसमें हीम रंजक लाल रंग देता है।
↪हीमोग्लोबिन में हिमेटिन नामक लोह योगिक पाया जाता है।
↪हीमोग्लोबिन की कमी से एनीमिया (रक्तअल्पता) रोग हो जाता है।


रुधिर के अवयव: रुधिर मुख्य 2 अवयवो से मिलकर बना होता है-
1) प्लाज्मा  2) रुधिराणु
1) प्लाज्मा: यह हल्के पीले रंग का साफ, पारदर्शक तथा अजीवित तरल भाग होता है। यह रुधिर में लगभग 55% भाग होता है।
संघठन:

जल (91%) + प्रोटीन (7%) + लवण (0.9%) + ग्लूकोस (0.1%) + शेष शर्करा, हार्मोन, वसा, यूरिया, विभिन्न आयन, कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ आदि।
➡प्लाज्मा प्रोटीन:  प्रोटीन प्लाज्मा को गाढ़ापन देते है इसमें मुख्य प्रोटीन निम्न है-
a) फाईब्रिनोजन: रुधिर का थक्का बनाने में मदद करता है।

b) ग्लोब्युलिन्स: प्रतिरक्षी तन्त्र में सहायता करता है।

c) एल्ब्यूमिन: यह परासरण सन्तुलन बनाये रखता है।


➡सीरम(Serum): प्लाज्मा में से फाईब्रिनोजन प्रोटीन को हटा देने के बाद शेष प्लाज्मा सीरम कहलाता है।
➡खनिज आयन: प्लाज्मा में मुख्य रूप से Na+, Ca++, Mg++, HCO3- ,

Fe++ आदि खनिज पाए जाते है।
➡ अकार्बनिक लवण: इसे रुधिर विधुत अपघट्य कहा जाता है , इसकी सांद्रता होमियोस्टेसिस के द्वारा वृक्क नियंत्रित रखता है।

➡एंटीकोगुलेन्ट: इसे एन्टीप्रोथ्रोम्बीन या हिपेरिन भी कहते है। यह प्रोथ्रोम्बीन को चोट मुक्त नलिकाओं में सक्रिय थ्रोम्बीन में परिवर्तित होने से रोकता है ,जिससे शरीर के अंदर रक्त का थक्का नही बनता है। इसका निर्माण यकृत के द्वारा होता है।


2) रुधिराणु: रुधिर में प्लाज्मा के अतिरिक्त शेष भाग रुधिराणु कहलाते है। यह रुधिर में लगभग 45% भाग होता है।
रुधिराणुओ को  3 भागो में बाँटा जाता है।
a) लाल रुधिर कणिकाएं / एरिथ्रोसाइट्स (RBC) :
↪सँख्या: 4.5-5 लाख/मिमी 3
↪आकार: द्विअवतल या उभयावतल
↪रंग: लाल(हीमोग्लोबिन के कारण)
↪केन्द्रक: केन्द्रक नही पाया जाता है (ऊँट व लामा स्तनधारियों में केन्द्रक पाया जाता है)।
↪निर्माण: भ्रूण अवस्था मे  यकृत व प्लीहा में तथा जन्म के पश्चात मेरुरज्जु(अस्थिमज्जा) में।
↪कार्य: प्रत्येक कोशिका को ऑक्सिजन पहचान तथा कार्बन डाई ऑक्साइड वापस लाना।
↪जीवनकाल: लगभग 120 दिनों का।
↪मृत्यु: यकृत ओर प्लीहा में। इसलिए इन दोनों को RBC का कब्रिस्तान कहा जाता है।

💡RBCs की संख्या हिमोसाइटोंमीटर से ज्ञात की जाती है।

b) स्वेत रुधिर कणिकाएँ / ल्यूकोसाइट्स (WBC): 
↪सँख्या: 6000-8000 /मिमी 3
↪आकार: अनियमित 
↪रंग: रंगहीन (हीमोग्लोबिन की अनुपस्थिति के कारण)।
↪केन्द्रक: केन्द्रक पाया जाता है।
↪निर्माण: सामान्यत मेरूरज्जु (अस्थिमज्जा) तथा लिम्फ नोड में होता है , लेकिन कभी कभी यकृत व प्लीहा में भी होता है।
↪कार्य: रोगाणुओं व जीवाणुओ को नष्ट करके शरीर को सुरक्षा प्रदान करती है, इसलिए इन्हें सुरक्षा कोशिका भी कहते है।
↪जीवनकाल: 3-5 दिन का।
↪मृत्यु: इसकी मृत्यु रक्त में होती है।

💡सबसे बड़ा स्वेत रुधिर कण: मोनोसाइट

💡सबसे छोटा स्वेत रुधिर कण: लिम्फोसाइट


c) रुधिर प्लेटलेट्स / रक्त बिम्बाणु / थ्रोम्बोसाइट :
↪सँख्या: 1.5-3.5 लाख/मिमी 3
↪आकार: गोल या डिस्क जैसा
↪रंग: रंगहीन (हीमोग्लोबिन की अनुपस्थिति के कारण)।
↪केन्द्रक: इसमें केन्द्रक नही पाया जाता।
↪निर्माण: इसका निर्माण अस्थिमज्जा (मेरूरज्जु) की मेगाकेरियोटिक दीर्घ कोशिकाओं में होता है।
↪कार्य: रक्त का थक्का बनाने में मदद करना।
↪जीवनकाल: लगभग 8-10 दिन का ।
↪मृत्यु: इसकी मृत्यु प्लीहा में होती है।


रक्त का थक्का बनने की प्रकिया:
यह एक जटिल प्रक्रिया है। इसे निम्न प्रक्रिया से समझा जा सकता है-
I) सबसे पहले थ्रोम्बोप्लास्टिन, प्रोथ्रोम्बिनेज एन्जाइम बनाता है।  यह एंजाइम प्रोथ्रोम्बिन को थ्रोम्बिन में परिवर्तित करता है
      प्रोथ्रोम्बिन ➡ थ्रोम्बिन
II) थ्रोम्बिन , फ़ाईब्रिनोजन से विटामिन K की उपस्थिति में अभिक्रिया करके फाईब्रिन का निर्माण करता है।
      थ्रोम्बिन ➡ फाईब्रिन
III) फाईब्रिन , रुधिराणुओ से अभिक्रिया करके रक्त का थक्का बनाता है।
     फाईब्रिन ➡ रक्त का थक्का

No comments:

Post a Comment

मैं योगेश प्रजापत आपका तह दिल से शुक्रगुजार हूं कि आपने अपने कीमती समय हमारी वेबसाइट के लिए दिया, कमेंट करके अवश्य बताए कि हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको केसी लगी...🙏🙏🙏