ट्रांसफॉर्मर (Transformer)

ट्रांसफॉर्मर (Transformer):

ट्रांसफॉर्मर

  • ट्रांसफार्मर का अविष्कार माइकल फैराडे तथा  जोसेफ हेनरी ने किया था।
  • ट्रांसफार्मर एक ऐसा स्थिर विद्युत यन्त्र है जो ही प्रत्यावर्ती धारा के वोल्टेज को कम या ज्यादा करता है।
  • इसमें धारा की आवर्ती में कोई परिवर्तन नही होता है।

ट्रांसफार्मर की सरंचना:

  1. ट्रांसफार्मर की कोर (पटलित क्रोड) : ट्रांसफार्मर में  कोर(core) बीच में होती है यह लेमिनेटेड स्टील प्लेट या कच्चे लोहे  की बनी होती है  क्योकि ये दोनों ही लोहचुम्बकीय पदार्थ है जो चुम्बकीय बल रेखाओ को केंद्रित करके ऊर्जा के क्षय को कम करते है। क्रोड आयताकार पत्तियो के रूप में होती है इन सभी पत्तियों के बीच minimum Air Gap होता है जो भवंर धाराओं (Eddy current) को कम करते है। क्रोड के चारों ओर तांबे के तारो की कुंडली (winding)  लिपटी होती है।
  2. कुंडली (winding): कोर के चारो ओर तांबे के  तारों के फेरे होते है उसे वाइंडिंग कहते है। इन वाइंडिंग को 2 भागो में विभाजित किया जाता है
  • प्राथमिक कुंडली  
  • द्वितीयक कुंडली
💡सिंगल फेज ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग होती है एक प्राथमिक वाइंडिंग (Primary winding) और दूसरी द्वितीयक वाइंडिंग (secondary winding)  होती है।
💡थ्री फेज ट्रांसफार्मर  है तो उसमे तीन प्राथमिक वाइंडिंग (Primary winding) और तीन द्वितीयक वाइंडिंग (secondary winding)  होती है ये सभी insulated layer से एक दुसरे से जुड़ी रहती है।

ट्रांसफॉर्मर का सिद्धांत:

ट्रांसफॉर्मर अन्योन्य प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है अर्थात ट्रांसफार्मर में जब प्राथमिक कुंडली मे प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित की जाती है तो क्रोड में चुम्बकीय क्षेत्र पैदा हो जाता है जिसका मान बदलता रहता है द्वितीयक कुंडली इसी क्रोड से लिपटी होती है इससे द्वितीयक कुंडली से गुजर रहे चुम्बकीय फ्लक्स में भी परिवर्तन होता रहता है जिससे विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत से चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन के कारण द्वितीयक कुंडली मे प्रत्यावर्ती धारा बहने लगती है

वोल्टेज लेवल के आधार पर ट्रांसफॉर्मर दो प्रकार के होते है 

1) उच्चायी ट्रांसफॉर्मर (Steps Up Transformer) ऐसे ट्रांसफॉर्मर जो वोल्टेज लेवल को बढ़ाते है उन्हें  उच्चायी ट्रांसफॉर्मर कहते है।
इसमें द्वितीयक कुंडली मे फेरो की संख्या , प्राथमिक कुंडली के फेरो कज सँख्या से अधिक होती है।
2) अपचायी ट्रांसफॉर्मर (Step down transformer) ऐसे ट्रांसफॉर्मर जो वोल्टेज लेवल को घटाते है उन्हें  अपचायी ट्रांसफॉर्मर कहते है।
इसमें प्राथमिक कुंडली मे फेरो की संख्या द्वितीयक कुंडली के फेरो की संख्या से अधिक होती है।

ट्रांसफार्मर की दक्षता: 

ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग को प्राप्त उर्जा और प्राइमरी वाइंडिंग को दी उर्जा के अनुपात को ट्रांसफार्मर की दक्षता कहते है।
आदर्श ट्रांसफॉर्मर की दक्षता 100% होती है।

ट्रांसफार्मर में ऊर्जा की हानी:

ट्रांसफार्मर में होने वाली ऊर्जा की हानीया Copper loss,Iron loss, megnetic flux leakage, शैथिल्य हानि आदि होती है।
Copper Loss ट्रांसफार्मर में उपयोग होने वाली coils कॉपर की होती है करंट प्रवाहित होने से ये गर्म होती है यहाँ पर ऊर्जा की हानि ऊष्मा के रूप में हो जाता है। इसी प्रकार अन्य हानिया भी होती है। 

कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु:

  1. ट्रांसफार्मर का क्रोड़ पटलित भंवर धाराओं को कम करने के लिए होता है।
  2. ट्रांसफार्मर अन्योन्य प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
  3. ट्रांसफार्मर वोल्टेज बदलता हैवोल्टेज बदलते समय यह आवर्ती नहीं बदलता है।
  4. ट्रांसफार्मर प्रत्यावर्ती धारा के लिए काम करता है। दिष्ट धारा पर यह कार्य नही करेगा।
  5. उच्चायी ट्रांसफार्मर वोल्टेज को बड़ा देता है।
  6. अपचायी ट्रांसफार्मर वोल्टेज को घटा देता है।
  7. आदर्श ट्रांसफार्मर की दक्षता 100% होती है।
  8. इसमें कोई हिलता हुआ भाग नहीं होता है, इसलिए इसे स्थिर वैधुत यन्त्र कहा जाता है।

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