पारिस्थितिकी (Ecology)

पारिस्थितिकी (Ecology): जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत जीवधारियों तथा उनके वातावरण के पारस्परिक सम्बंधो का अध्ययन किया जाता है , उसे पारिस्थितिकी विज्ञान कहते है।
  • पारिस्थितिकी को सर्वप्रथम अर्नेस्ट हैकल ने परिभाषित किया था। 
  • अंग्रेजी भाषा का ‘इकोलॉजी’ (Eco+logy) शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों oikos और logos से मिलकर बना है।➡Eco↔Oikos का अर्थ↔ ‘घर’ या ‘रहने का स्थान’ तथा logy↔logos का      अर्थ↔ ‘अध्ययन’
पारिस्थितिकी तंत्र या पारितन्त्र (Ecosystem): वातावरण में उपस्थित सजीव, निर्जीव तथा अन्य सभी कारकों के परस्पर सम्बन्ध से बने तंत्र को पारिस्थितिकी तंत्र कहते है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र शब्द का सबसे पहले उपयोग ए.जी.टेन्सले ने किया था।
  • पारिस्थितिकी तंत्र 2 घटकों से मिलकर बना होता है
  1. अजैविक कारक (Abiotic Factor): ऐसे वातावरणीय कारक जो निर्जीव होते है अजैविक कारक कहलाते है। उदाहरण- ताप, प्रकाश, वायु, आर्द्रता, मृदा, खाद्य पदार्थ आदि।
  2. जैविक कारक (Biotic factor): पारितंत्र में पाए जाने वाले सभी सजीव , जैविक घटक कहलाते है। इन्हें 2 भागो में बाँटा गया है
a) उत्पादक (Producer): ऐसे सजीव जो अपना भोजन स्वयं बनाते है, उत्पादक कहलाते है। उदाहरण- हरे पादप तथा नील हरित शैवाल।↪पादपों द्वारा निर्मित कार्बनिक पदार्थ जैवभार कहलाता है।
↪जैवभार बनने की दर को प्राथमिक उत्पादकता कहते है।
b) उपभोक्ता ( Consumers): ऐसे सजीव जो ऊर्जा/भोजन के लिए उत्पादकों पर निर्भर करते है, उपभोक्ता कहलाते है।
↪ये तीन प्रकार के होते है-
  • प्राथमिक उपभोक्ता: सीधे उत्पादक पर निर्भर करते है जैसे गाय, बकरी, खरगोश, टिड्डा आदि।
  • द्वितीयक उपभोक्ता: ये प्राथमिक उपभोक्ता पर निर्भर करते है जैसे कुत्ता, बिल्ली , मेंढक आदि।
  • तृतीयक उपभोक्ता: ये द्वितीयक उपभोक्ता पर निर्भर करते है जैसे शेर, साँप, गिध्द आदि।
💡 शाकाहारी (Herbivores): जो उत्पादको को खाते है।
💡 मांसाहारी (Carnivores): जो सिर्फ उपभोक्ताओं को खाते है।
💡 सर्वाहारी (Omnivores): जो उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनो को खाते है।
💡 मृतहारी (Detrivores): जो सड़े गले जीवो को खाते है।
💡 अपघटक (Decomposers): जो मृत शरीर को अपघटित कर देते है

पारितंत्र में ऊर्जा प्रवाह: ऊर्जा का प्रवाह सदिशीय होता है जो निम्न अनुसार है-
सूर्य➡उत्पादक➡उपभोक्ता➡वायुमंडल➡सूर्य
लिंडमेन नियम के अनुसार एक स्तर से दूसरे स्तर में सिर्फ 10% ऊर्जा ही पहुच पाती है, शेष ऊर्जा जीवो के जैविक क्रियाओ में उपयोग हो जाती है।
अतः ऊर्जा का क्रम:
उत्पादक >प्राथमिक >द्वितीयक >तृतीयक
जैसे जैसे ऊर्जा कम होती है वेसे वेसे उनकी जनसंख्या भी कम हो जाती है अतः जनसंख्या का क्रम:
उत्पादक >प्राथमिक >द्वितीयक >तृतीयक

पादपों में पारिस्थितिकी अनुकूलता: अलग अलग पारितंत्रो के हिसाब से पादप अनुकूलन परिवर्तन हुए है-

  1. जलोद्मिद् (Hydrophytes): जल या जल से संतृप्त मिट्टी में पाए जाते है।
  2. समोद्मिद् (Mesophytes): जल की औसत मात्रा वाले स्थानों में पाए जाते है।
  3. मरुद्मिद् (Xerophytes): शुष्क या जल की कमी वाले स्थानों में पाए जाते है।
  4. लवणोंद्मिद् (Halophytes): लवण वाली मृदा में पाए जाते है
  5. अम्लोंद्मिद् (Oxalophytes): अम्लीय मृदा में पाए जाते है।
  6. मरुस्थलोंद्मिद् (Eremophytes): रेगिस्तान में उगने वाले पादप होते है।
  7. कच्छोंद्मिद् (Helophytes): दलदल में उगने वाले पादप होते है।
पारिस्थितिकी सम्बंध: पारिस्थितिकी तंत्र में जीवो के मध्य पाए जाने वाले सम्बंध को पारिस्थितिकी सम्बंध कहते है। जैसे-
  1. परजीविता: विषमपोषी जीव , अन्य जीवों से पोषण प्राप्त करते है।
  2. सहभोजिता: इसमें एक सहभागी को लाभ होता है लेकिन दूसरे को लाभ या हानी कुछ नही होता।
  3. असहभोजिता: एक जीव के उत्पाद से दूसरे जीव को हानि होती है।
  4. सहोपकारिता: दोनो सहभागी समान रूप से एक दूसरे को लाभ पहुचाते है।
  5. मृतोपजीविता: जीव अपना भोजन मृत जीवो से प्राप्त करते है।
  6. परभक्षित: जीव अपना भोजन जीवित शिकार से प्राप्त करते है।

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