जीवाणु से होने वाले रोग

जीवाणु से होने वाले रोग (Becterial Disease): ऐसे संक्रमण रोग जो जीवाणुओं के द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते है , जीवाणु जनित रोग कहलाते है।

कुछ मुख्य जीवाणु जनित रोग निम्न है-
trick:  (एक लड़का, सिआँग नाम के लड़के को पंडित
के टीके के आकार (U-आकार) के बारे में बता रहा है)

"पंडि का टीका न्यू है सिआँग"
पं - प्लेग , डि - डिफ्थीरिया , त -   तपैदिक , का - काली खाँसी  , टी -   टिटनेस तथा टायफाइड ,   का - कुष्ठ/   कोढ़ , न्यू - निमोनिया , है - हैजा , सि -   सिफलिस , आँ - आँत ज्वर , ग -   गोनोरिया  】


1) प्लेग: 
↪विषाणु का नाम: बेसिलस पेस्टिस
↪संक्रमण का माध्यम: चुहों पर पाए जाने वाले पिस्सुओं द्वारा (जेनॉप्सला केओपीस सबसे खतरनाक पिस्सू है)
↪प्रभावित अंग: फेफड़े
↪लक्षण: शारिरिक दर्द , तेज बुखार व शरीर पर गिल्टीयाँ
↪रोकथाम: सल्फा  तथा स्ट्रेप्टोमाइसिन औषधियो के प्रयोग से


2) डिफ्थीरिया: 
↪विषाणु का नाम: कोरनी बेक्टीरियम डिफ्थीरी
↪संक्रमण का माध्यम: रोगी के खाँसने व छीकने से , संक्रमित दूध से
↪प्रभावित अंग: स्वास नली
↪लक्षण: स्वास लेंने में कठिनाइ व दम
 घुटना 
↪रोकथाम: डिफ्थीरिया एंटीटॉक्सिन टिका

3) तपेदिक(TB): 
↪विषाणु का नाम: माइकोबेक्टीरियम जीवाणु
↪संक्रमण का माध्यम: रोगी व्यक्ति के सम्पर्क में अधिक समय तक आने पर
↪प्रभावित अंग: फेफड़े
↪लक्षण: अक्रिय अवस्था मे लक्षण नही दिखाई देते है लेकिन प्रतीरक्षा तन्त्र कमजोर होने पर ये सक्रिय हो जाते है 
↪रोकथाम: केवल अक्रिय अवस्था मे प्रतिजैविक ओषधियो के द्वारा इलाज सम्भव है


4) काली खाँसी: 
↪विषाणु का नाम: हिमोफिलस परटूसिस
↪संक्रमण का माध्यम: हवा में फैले जीवाणुओ के द्वारा अधिकांश बच्चों में होता है
↪प्रभावित अंग: स्वसन तन्त्र 
↪लक्षण: रात्रि में लगातार खाँसी चलना
↪रोकथाम: बच्चों को DPT (डिफ्थीरीया, पट्यूसिस व टिटनेस) का टीका लगाया जाता है


5) टिटनेस(Lock jaw): 
↪विषाणु का नाम: क्लास्टू
↪संक्रमण का माध्यम: जानवरों के गोबर जैसे कि घोड़े व गाय एवं दूषित मिट्टी से 
↪प्रभावित अंग: तांत्रिक तन्त्र
↪लक्षण: तेज बुख़ार , शरीर मे ऐठन विशेषकर जबड़े में
↪रोकथाम: टिटनेस टोक्सोइड टिकाकरण के द्वारा

6) टाइफाइड: 
↪विषाणु का नाम: साल्मोनेला टाइफी
↪संक्रमण का माध्यम: विषाक्त जल व भोजन के द्वारा
↪प्रभावित अंग: आँत
↪लक्षण: तेज बुखार, पेेेट दर्द , कब्ज , सिर दर्द
↪रोकथाम: निदान के लिए वाइडल टेस्ट तकनीक का उपयोग किया जाता है।


7) कुष्ठ/कोढ़: 
↪विषाणु का नाम: माइक्रोबेक्ट्रियम लेप्री
↪संक्रमण का माध्यम: रोगी व्यक्ति के निकट अधिक समय तक रहने पर
↪प्रभावित अंग: त्वचा व तंत्रिका तंत्र
↪लक्षण: शरीर पर चकते ,उत्तको 
का अपक्षय
↪रोकथाम: सल्फा  तथा स्ट्रेप्टोमाइसिन औषधियो के प्रयोग से

8) निमोनिया: 
↪विषाणु का नाम: डिप्लोकोकस न्युमोनी
↪संक्रमण का माध्यम: रोगी व्यक्ति खाँसने व छीकने से 
↪प्रभावित अंग: फेफड़े
↪लक्षण: तेज बुखार व सांस लेंने में कठिनाइ
↪रोकथाम: ठंड से बचाव व प्रतिजैविक दवाइयों के उपयोग से


9) हैजा: 
↪विषाणु का नाम: विब्रियो कोलेरी
↪संक्रमण का माध्यम: दूषित भोजन व जल से , घरेलू मक्खी से
↪प्रभावित अंग: आँत
↪लक्षण: लगातार उल्टी व दस्त , मांसपेशियों में खिंचाव 
↪रोकथाम: हेजे का टीकाकरण, तथा रोगी को उबला हुआ जल व अच्छी तरह पका हुआ भोजन का सेेेवन करना चाहिए


10) सिफलिस: 
↪विषाणु का नाम: ट्रेपोनेमा पेलिडम
↪संक्रमण का माध्यम: असुरक्षित यौन सम्बन्ध से 
↪प्रभावित अंग: शिश्न (नर जननांग)
↪लक्षण: शिश्न में घाव ,सूजन व दर्द होना
↪रोकथाम: पेनीसिलीन प्रतिजैविक के उपयोग से तथा सुरक्षित योन सम्बंध से।

11) आँत ज्वर: 
↪विषाणु का नाम: साल्मोनेला टाईफोसा
↪संक्रमण का माध्यम: दूषित भोजन व जल से
↪प्रभावित अंग: आँत
↪लक्षण: बुुुख़ार व लाल चकते पड़ना
↪रोकथाम: क्लोरोमाईसिटीन ओषधि तथा जल व भोजन में स्वच्छता रखकर

12) गोनोरिया: 
↪विषाणु का नाम: नाइसेरिया गोनेरियाई
↪संक्रमण का माध्यम: रोगी व्यक्ति से असुरक्षित योन सम्बंध बनाने से
↪प्रभावित अंग: जनन अंग 
↪लक्षण: मूत्र मार्ग मेंं सूजन, लालपन होना, दर्द होना
↪रोकथाम: पेनीसिलीन, टेट्रासाईक्लीन , स्ट्रेप्टोमाईसिन प्रतिजैविको के उपयोग से तथा सुरक्षित योन सम्बंध से।







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