प्रतिरोध

प्रतिरोध : किसी भी पदार्थ का वह गुण जिसके कारण , उसमे प्रवाहित आयनों की गति में अवरोध उत्पन्न होता है, उसे पदार्थ का प्रतिरोध कहते है।
इसे R से प्रदर्शित करते है । इसका SI मात्रक 'ओम' होता है।


प्रतिरोधों का संयोजन :
प्रतिरोधों को संयोजन 2 प्रकार से किया जाता है-
1) श्रेणीक्रम संयोजन : जब प्रतिरोधों को इस प्रकार संयोजित किया जाए कि एक प्रतिरोध का दूसरा सिरा , दूसरे प्रतिरोध के पहले सिरे से जुड़े तो इसे श्रेणीक्रम संयोजन कहते है।
इस संयोजन में सभी प्रतिरोधो मे प्रवाहित विद्युत धारा का मान समान रहता है तथा सभी प्रतिरोधों में वोल्टेज  का मान  भिन्न रहता है
 यदि दो प्रतिरोध R1 तथा R2 श्रेणी क्रम में संयोजित है तो उनका तुल्य प्रतिरोध निम्न होगा 
  R=R1+R2
इसी प्रकार यदि n प्रतिरोध श्रेणी क्रम में संयोजित है तो उनका तुल्य प्रतिरोध
 R=R1+R2+...+Rn

2) समांतर क्रम संयोजन: जब प्रतिरोधो को इस प्रकार संयोजित किया जाए कि उनके सभी पहले सिरे एक साथ तथा सभी दूसरे सिरे एक साथ संयोजित हो तो इस प्रकार के संयोजन को समांतर क्रम संयोजन कहा जाता है
इस सयोजन में प्रतिरोधो में बहने वाली विद्युत धारा का मान भिन्न-भिन्न तथा उनमें उत्पन्न वोल्टेज का मान समान रहता है
यदि दो प्रतिरोध R1 तथा R2 समांतर क्रम में संयोजित है तो उनका तुल्य प्रतिरोध निम्न होगा 
  1/R=1/R1+1/R2
इसी प्रकार यदि n प्रतिरोध समांतर क्रम में संयोजित है तो उनका तुल्य प्रतिरोध
 1/R=1/R1+1/R2+...+1/Rn

प्रतिरोध को प्रभावित करने वाले कारक:

1) चालक की लंबाई : किसी भी चालक का प्रतिरोध उसकी लंबाई केे समानुपाती होता है
2) चालक का अनुप्रस्थ काट(मोटाई) :  किसी चालक का प्रतिरोध उसकेेेे अनुप्रथ काट के व्युतक्रमानुपाती होता है
3) पदार्थ की प्रकृति: भिन्न-भिन्न पदार्थों के लिए प्रतिरोध का मान भी भिन्न भिन्न होता है
4) ताप पर: किसी चालक का प्रतिरोध उसके ताप पर निर्भर करता है। ताप बढ़ने पर चालक का प्रतिरोध बढ़ता है, लेकिन ताप बढ़ने पर अर्द्धचालकों का प्रतिरोध घटता है





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